अभीद कश्मीरी एक प्रख्यात व्यंग्यकार और लेखक थे, जिन्होंने कश्मीर के राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य पर एक अमिट छाप छोड़ी। अपने तीखे व्यंग्य और विनोद की पैनी धार के माध्यम से, उन्होंने कश्मीर की समस्याओं को उजागर किया और स्थिति की जटिलताओं को समझने में अहम भूमिका निभाई।
अभीद का जन्म 1939 में श्रीनगर, कश्मीर में हुआ था। उन्होंने श्रीनगर के श्री प्रताप कॉलेज से अंग्रेजी साहित्य में स्नातक किया और बाद में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की।
अभीद ने अपने करियर की शुरुआत समाचार संवाददाता के रूप में की, लेकिन जल्द ही व्यंग्यकार और लेखक के रूप में पहचान बनाई। उन्होंने कई पत्रिकाओं और समाचार पत्रों में योगदान दिया, जिनमें द स्टेट्समैन, इंडिया टुडे, फ्रंटलाइन और द हिंदू शामिल हैं।
अभीद का लेखन कश्मीर के राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर उनकी तीखी बुद्धि और विनोदी शैली के लिए जाना जाता था। उन्होंने कश्मीर के अलग-अलग राजनीतिक गुटों, राज्य सरकार की नीतियों और भारत-पाकिस्तान संबंधों की खुलकर आलोचना की।
अभीद ने कश्मीर संघर्ष को कश्मीरी लोगों के लिए एक त्रासदी के रूप में देखा। उन्होंने भारतीय शासन और पाकिस्तानी हस्तक्षेप की आलोचना की, और तर्क दिया कि कश्मीरी लोगों को अपनी भविष्य निर्धारित करने का अधिकार दिया जाना चाहिए।
अपने योगदान के लिए, अभीद को कई प्रतिष्ठित पुरस्कार और सम्मान दिए गए, जिनमें शामिल हैं:
12 मार्च, 2018 को लंबी बीमारी के बाद अभीद का निधन हो गया। उनकी मृत्यु ने कश्मीर और साहित्य जगत में एक बड़ा शून्य पैदा कर दिया।
आज, अभीद को कश्मीर के सबसे प्रभावशाली व्यंग्यकारों और लेखकों में से एक के रूप में याद किया जाता है। उनकी विरासत उनकी तीखी बुद्धि और कश्मीर के प्रति अटूट प्रतिबद्धता में जारी रहेगी।
अभीद कश्मीरी कश्मीरी संस्कृति के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से कश्मीरी भाषा, कला और विरासत को बढ़ावा दिया। उन्होंने कश्मीर की सांस्कृतिक विविधता को भी उजागर किया, जो हिंदू, मुस्लिम और सिख समुदायों से लेकर लद्दाखी और डोगरा समुदायों तक फैली हुई है।
अभीद ने हिंसा और उग्रवाद की कड़ी निंदा की, जिसने कश्मीर को तबाह कर दिया। उन्होंने तर्क दिया कि ये दमनकारी ताकतें केवल कश्मीरी लोगों को और पीड़ा पहुंचा सकती हैं। उन्होंने संवाद और शांतिपूर्ण समाधान के लिए आवाज उठाई।
अभीद ने भारत-पाकिस्तान संबंधों को सामान्य बनाने और कश्मीर संघर्ष को हल करने के लिए दोनों देशों से आग्रह किया। उन्होंने तर्क दिया कि इस संघर्ष ने दोनों देशों के लोगों को अनावश्यक पीड़ा दी है।
अभीद का मानना था कि कश्मीरी लोगों को अपनी भविष्य निर्धारित करने का अधिकार है। उन्होंने कश्मीर के लिए एक बड़ी स्वायत्तता या स्वशासन का आह्वान किया, जो कश्मीरी लोगों को अपनी जरूरतों और आकांक्षाओं को पूरा करने की अनुमति देगा।
अभीद कश्मीरी कश्मीर के लिए एक प्रेरणा थे। उन्होंने अपनी लेखनी के माध्यम से कश्मीरी लोगों की आकांक्षाओं को आवाज दी। उन्होंने कश्मीर की समस्याओं को उजागर किया और समाधान खोजने के लिए प्रेरित किया।
अभीद की विरासत आज भी कश्मीर में जारी है। उनकी रचनाएँ नई पीढ़ी के लेखकों और कार्यकर्ताओं को प्रेरित करना जारी रखती हैं जो कश्मीरी लोगों के लिए एक न्यायपूर्ण और शांतिपूर्ण भविष्य की तलाश में हैं।
समुदाय | जनसंख्या |
---|---|
कश्मीरी | 6,801,893 |
हिंदुस्तानी | 2,578,345 |
डोगरा | 2,380,365 |
लद्दाखी | 2,74,289 |
अन्य | 6,74,463 |
स्रोत: भारत की जनगणना (2011)
वर्ष | मौतें |
---|---|
1989-1999 | 27,000-37,000 |
2000-2009 | 17,000-23,000 |
2010-2019 | 11,000-15,000 |
स्रोत: दक्षिण एशियाई आतंकवाद पोर्टल
कश्मीर के भविष्य को आकार देने का समय आ गया है। एक ऐसा भविष्य जो सभी कश्मीरियों के लिए
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